कमल खिलता है कीचड़ में और कमल लेना है तो दलदल में उतरना ही पड़ेगा। यही हाल मखाना की खेती करने वाले किसान का है, जिन्हे बड़ी परेशानियों को झेलने के बाद मखाना मिलता है। मखाना कमल के बीज से बनता है।

यह कमल बीज ही होता है. यह तालाब के कीचड़ में उगता है. इसकी उपज आसान नहीं होती है. किसानों को इसके लिए काफी मेहनत करनी पड़ती है। प्रोटीन के मामले में मखाने का कोई तोड़ नहीं है। सेहतमंद होने के साथ ही मखाने का प्रयोग पूजा पाठ से लेकर स्वादिष्ट भोजन बनाने के लिए भी होता है।
इसकी खेती करना बहुत ही कठिन काम है, इसमें जोखिम भी रहता है, क्योंकि पानी के अंदर कांटों के बीच काफी देर तक रहने के बाद इसे हासिल किया जाता है। इसके बाद भी एक लंबी प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। आइए आज जानते है की मखाना बनता कैसे है, थाली तक पहुंचने के लिए क्या क्या प्रक्रिया करना होता है।

पानी के अंदर से मखाने का बीज या गुर्मी निकालना, यह सबसे ज्यादा मुश्किल भरा काम है सामान्य तौर पर चार से पांच फुट गहरे पानी, कीचड़ में गपी गिर्री को निकालने से कई बार नाखून तक निकल जाते हैं।
किसानो के लिए चुनौती इस बात की है कि इसे निकालने के लिए पानी के अंदर उतरना पड़ता है ज्यादा से ज्यादा 5 मिनट तक अंदर आ जा सकता है लेकिन अंदर कांटों के बीच ही रहना पड़ता है। कई बार उंगलियों से खून निकल जाता है और बार-बार ऐसा होने की वजह से हाथों में कांटे लग जाते है जो जख्मी कर देता है।

कमल के बीज निकालने के बाद उसकी गुर्री को लावे का रूप दिया जाता है। यह प्रक्रिया काफी जटिल है इसके लिए जिस जगह लावा बनाया जाता है उसका तापमान 40 से 45 डिग्री रखा जाता है। करीब 350 डिग्री पर लावा बनाकर पकाने की प्रक्रिया 72 से 80 घंटे की होती है। कारखाने में गुर्री की ग्रेडिंग छह छलनियों से की जाती है़। कच्चा लोहा मिश्रित मिट्टी के छह बड़े पात्रों को चूल्हों या भट्टियों पर रखा जाता है।
इसके बाद दूसरी प्रक्रिया, 72 घंटे बाद की जाती है, इस दौरान बहरी परत एकदम चटक जाती है फिर उसे हाथ में लेकर हल्की सी चोट की जाती है और नर्म मखाना बाहर आता है। मखाने की खेती दुनिया की सबसे ज्यादा मुश्किल खेती कही जाती है।

बिहार के उत्तरी इलाके में मखाने की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है जिसमें करीब 5 से 6 लाख लोग जुड़े हुए हैं। मखाने का बीज निकालने के लिए पानी के अंदर उतरना पड़ता है जो किसान ये काम करते है, मल्लाह कहलाते है। ये खास गोताखोर होते हैं जो पानी में लंबे समय तक रह सकते हैं।
इत्तनी मेहनत और अपनी जान से खेलकर किसान मखाना बनाते पर उन्हे उचित परिश्रम नहीं मिलता, किसान मखाना के व्यापारियों को ढाई सौ रुपए तक में बेच देते हैं और यही मखाना बाद में बाजार में हजार रुपए तक में बेचा जाता है।