वे सभी लोग जो अपनी गाडी से चलते है और लगातार बढ़ रहे पेट्रोल व डीजल की कीमतों से परेशान हैं, या फिर कार के प्रदूषण फैलाने के बावजूद उसे बेचकर नई बिना प्रदूषण वाली इलेक्ट्रिक कार भी नहीं ले पा रहे, तो यह खबर आपके लिए बहुत ही कारगर हो सकती है, वैज्ञानिकों ने बताया है की ईको-व्हीकल ड्राइविंग (Eco Driving) या पर्यावरण ड्राइविंग से आप पुरानी कार के बावजूद ईंधन की जबरदस्त बचत कर सकेंगे और प्रदूषण भी नहीं होगा तथा हमारा पर्यावरण साफ सुथरा रहेगा।

इलेक्ट्रिक वाहनों को आज कल सभी लोग प्रमोट कर रहे है, देश के कई राज्य इलेक्ट्रिक व्हीकल को लेकर पॉलिसी भी जारी कर चुके हैं लेकिन वैज्ञानिकों का कहना है कि नए प्रदूषण मुक्त वाहनों में आने के लिए बहुत टाइम लग जायेगा। इस तरह से अगर पेट्रोल डीजल गाड़ियों को इको फ्रेंडली बना दे तो कुछ हद तक पर्यावरण की परेशानियों से निपटा जा सकता है। और हम अपना ईंधन भी बचा सकते है।
CSIR रिसर्च इंस्टीट्यूट के सीनियर प्रिंसिपल वैज्ञानिक और प्रोफेसर एसीएसआईआर ट्रांस्पोर्टेशन प्लानिंग एंड एनवायरनमेंट डॉ. रविंद्र कुमार कहते हैं कि अब पर्यावरण और तेल कीमतों को देखते हुए इलेक्ट्रिक वाहनों पर स्विच किया जा रहा है लेकिन जो गाड़ियां देश में पहले से चल रही हैं उन पर भी तकनीक का इस्तेमाल करना होगा नहीं तो एक तरफ चीजें ठीक होंगी और दूसरी तरफ हालात गड़बड़ हो जाएंगे।
50-60% होगी ईंधन की बचत और घटेगा प्रदूषण
ईको-ड्राइविंग व्यवहार और प्रशिक्षण प्रथाओं से ईंधन अर्थव्यवस्था में 11-50% तक का सुधार। कार्बनडाई आक्साइड के उत्सर्जन में भरी कमी आ सकती है। जिससे पर्यावरण के साथ साथ सामाजिक स्वास्थ्य पर अच्छा प्रभाव पड़ेगा।
पेट्रोल डीजल की बचत होगी

डॉ. रविंद्र कहते है कि ईको-ड्राइविंग या ग्रीन ड्राइविंग एक सिस्टम है, जिसमें कार की गति का विशेष तौर पर ध्यान दिया जाता है। इससे ईंधन की भारी बचत होती है। रिसर्च में बताया गया है कि गाड़ी की स्पीड जितनी अधिक कम या जितनी अधिक ज्यादा होगी तो ईंधन की खपत सबसे ज्यादा होगी। अगर कोई कार 10 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से चल रही है तो वह 100 किलोमीटर तक पहुंचने में 14 लीटर ईंधन लेगी, जबकि यही कार अगर 120-140 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चल रही है तो इतनी ही दूरी तय करने में 14-16 लीटर ईंधन लेगी।
इको ड्राइविंग क्या है और कैसे काम करता है ?
CSIR के रिसर्चर डॉ. रविंद्र कहते हैं कि ड्राइविंग का एक साईकल होता है, पहले गाड़ी जीरो पर होती है जिसको हम सुस्ती या आइडलिंग कहते हैं, इसके बाद शुरू होता है एक्सेलरेशन। गाड़ी को एक्सलेरेट करने के बाद अगर सड़क अच्छी होती है तो हम क्रूज करते हैं। यहां ध्यान देने वाली बात है कि क्रूजिंग के दौरान हम गाड़ी को एक ही आदर्श गति पर रखें। 50-80 तक ग्रीन स्पीड होने के बावजूद अगर कार को 45-65 के बीच में ही चलाया जाए तो इसका प्रभाव भी अच्छा होता है साथ ही ईंधन की बचत होती है। और मशीनरी भी स्वस्थ रहती है।
इसके बाद हम देखते हैं कि अगर कहीं कोई गड्ढ़ा या ऐसी जगह आई जहां हमें गाड़ी को धीमा करना होता है तो धीरे-धीरे हम कार को डिसेलरेट करते हैं और फिर धीरे-धीरे कार को बंद करते हैं, ये है कि हड़बड़ी और जल्दबाजी के चलते लोग ड्राइविंग के इन चक्रों को भी जल्दबाजी में इस्तेमाल करते हैं, जिसका प्रभाव कार के इंजन और अन्य पार्ट पर पड़ता है और ग्रीन हाउस गैसेज का उत्सर्जन बढ़ जाता है। डॉ. रविंद्र कहते हैं कि कोई व्यक्ति कार या कोई चौपहिया वाहन चलाता है तो उसे इन चारों चक्रों से गुजरना पड़ता है, इन चक्रों से गुजरने के बाद ही गाड़ी की गति को ग्रीन स्पीड तक ले जाया जाए और वहीं स्थिर रखा जाए।